संस्कृति मंत्रालय के तत्‍वाधान में अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ IBC कल राष्ट्रीय संग्रहालय में आषाढ़ पूर्णिमा मनाएगा

भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के तत्वाधान मे बौद्ध परिसंघ (आईबीसी), 03 जुलाई, 2023 को राष्ट्रीय संग्रहालय, जनपथ, नई दिल्‍ली में धम्‍मचक्र प्रवर्तन दिवस के रुप में आषाढ़ पूर्णिमा का उत्‍सव मनाएगा। यह आईबीसी का वार्षिक प्रमुख कार्यक्रम है और बुद्ध पूर्णिमा अथवा वैशाख पूर्णिमा के पश्‍चात बौद्धों के लिए द्वि‍तीय प्रमुख बलिदान दिवस है।

इस कार्यक्रम में राष्‍ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का वीडियो संबोधन प्रस्‍तुत किया जाएगा। इस कार्यक्रम की झलकियों का प्रसारण लुम्‍बिनी (नेपाल) में आईबीसी की विशेष परियोजना- ‘‘भारत अन्‍तर्राष्‍ट्रीय बौद्ध संस्कृति और विरासत केन्‍द्र’’ में किया जाएगा। प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने पिछले वर्ष बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर लुम्‍बिनी, नेपाल में इस केन्‍द्र की आधारशिला रखी थी।

इस कार्यक्रम में परम पावन 12वें शैमगोन केंटिंग ताई सितुपा द्वारा आषाढ़ पूर्णिमा के महत्‍व पर धम्‍म बातचीत एवं संस्कृति और विदेश राज्‍य मंत्री श्रीमती मीनाक्षी लेखी का विशेष संबोधन शामिल होगा। इस कार्यक्रम में कई अन्य गणमान्य व्यक्ति और बौद्ध संघों के संरक्षक, प्रख्यात गुरु, विद्वान और नई दिल्ली स्थित राजनयिक प्रतिनिधि भाग लेंगे।

भारत की ऐतिहासिक विरासत को ध्यान में रखते हुए, बुद्ध के ज्ञान की भूमि, उनके धम्‍मचक्र को गति और महापरिनिर्वाण, आईबीसी नई दिल्‍ली, जनपथ के राष्ट्रीय संग्रहालय में आषाढ़ पूर्णिमा समारोह की मेजबानी कर रहा है जहां शाक्यमुनि के पवित्र अवशेष रखे गये हैं।

सारनाथ में ही बुद्ध ने अपना प्र‍थम उपदेश दिया था और धम्‍मचक्र को गति प्रदान की थी। आषाढ़ पूर्णिमा का शुभ दिन, जो हिन्‍दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ महीने की पूर्णिमा के दिन पड़ता है, इसे श्रीलंका में एसाला पोया और थाईलैंड में असन्हा बुचा के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन भारत के वाराणसी के पास वर्तमान सारनाथ में 'डीयर पार्क', शिशिपतन मृगदया में आषाढ़ की पूर्णिमा के दिन पहले पांच तपस्वी शिष्यों (पंचवर्गीय) को ज्ञान प्राप्त करने के बाद बुद्ध की पहली शिक्षा का प्रतीक है।

भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए वर्षा ऋतु विश्राम (वर्षा वासा) भी इस दिन से शुरू होता है जो जुलाई से अक्टूबर तक तीन चंद्र महीनों तक चलता है, जिसके दौरान वे एक ही स्थान पर रहते हैं, सामान्‍यत: गहन ध्यान के लिए समर्पित मंदिरों में रहते हैं। इस दिन को बौद्धों और हिंदुओं दोनों द्वारा अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए गुरु पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है।