विश्व आध्यात्मिकता महोत्सव, हैदराबाद में उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूलपाठ

नई दिल्ली विश्व के सभी धर्मों और आस्थाओं के आध्यात्मिक नेतृत्व, विद्वानों और साधकों की इस सम्मानीय सभा को संबोधित करना वास्तव में सम्मान और प्रसन्नता के क्षण हैं।

यह आयोजन दुनिया के सबसे बड़े ध्यान केंद्र कान्हा शांति वनम में हो रहा है।

हार्दिक प्रसन्नता है कि केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय, श्री राम चंद्र मिशन और अन्य के साथ समन्वित रूप से आध्यात्मिकता के इस महाकुंभ का आयोजन कर रहा है।

 

श्री राम चंद्र मिशन एक आध्यात्मिक आंदोलन है जो “सहज मार्ग” या “हार्टफुलनेस मेडिटेशन” के अभ्यास पर केंद्रित है।

 

हमें एक आध्यात्मिक विश्वविद्यालय चाहिए। वह एक है और यहीं है। इसे केवल विधिवत पुनीत स्थल के रूप में चिन्हित किया जाना है।

 

कान्हा शांति वनम के शांत वातावरण में, हम खुद को शांति के सागर में डूबा हुआ पाते हैं, युगों-युगों से गूंजती आध्यात्मिकता की गूँज में आसक्त हैं।

 

“आंतरिक शांति से विश्व शांति” की थीम आज के वैश्विक परिवेश में संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए परिपूर्ण समसामयिक प्रासंगिकता रखती है।

 

बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव, अन्यायपूर्ण और असमान विकास, धर्म या आस्था के आधार पर दमन, असहिष्णुता, भेदभाव और हिंसा के बढ़ने से विश्व परिदृश्य चिंता का विषय है। इस स्थिति में, हमारा भारत आशा की किरण है, ज्ञान की किरण है, मानवता का घर है।

 

हमारी सभ्यता का सदाचार सर्व धर्म समभाव के सिद्धांत पर केन्द्रित है। भारत सदियों से अनेकता में एकता को प्रतिबिंबित करने वाले सभी धर्मों और सभी आस्थाओं के समान संरक्षण और संवर्धन के सिद्धांत को दृढता से फलीभूत करते हुए बहुलवाद का गौरवशाली नेतृत्व कर रहा है।

 

हमारा भारत इस मामले में अनुकरणीय है कि हजारों वर्षों के हमारे ट्रैक रिकॉर्ड की बराबरी कोई अन्य देश नहीं कर सकता।

 

विविध धर्मों को अपनाने वाले बहुलवादी और लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में हमारे समृद्ध इतिहास ने अपनी आस्था के लिए प्रताड़ित जनों को शरण प्रदान की है। चाहे पारसी, बौद्ध, यहूदी या कोई अन्य मत हो, उन्होंने लगातार भारत में उत्पीड़न या भेदभाव रहित अभयारण्य पाया।

 

भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता, समानता और न्याय के मूल्यों को प्रति-स्थापित करता है। सीएए के माध्यम से अभी क्रियान्वित किये गये कार्यों का उद्देश्य किसी भी नागरिक के अधिकारों का उल्लंघन किए बिना प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों को राहत प्रदान करना है।

 

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग पड़ोसी देशों में प्रताड़ित अल्पसंख्यकों पर मानवाधिकार के दृष्टिकोण से ऐतिहासिक संदर्भ और सुखद प्रभाव को पहचानने में विफल रहे।

 

यह आध्यात्मिक महोत्सव एक समागम से कहीं अधिक है; यह सार्वभौमिक मूल्यों का अभिनंदन और उत्सव दोनों है जो सीमाओं और सांस्कृतिक विविधताओं से निकलते हुए मानवता को एक साथ जोड़ते हैं।