निर्जला एकादशी: आध्यात्मिक पर्व की महत्वपूर्ण जानकारी

पंडित निर्भय पांडे
नई दिल्ली, 11 जून 2024: आज पूरे देश में हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा निर्जला एकादशी का पावन पर्व मनाया जा रहा है। यह एकादशी व्रत जेष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है और इसे निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है।

निर्जला एकादशी व्रत को सभी एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण और कठिन माना जाता है। इस व्रत में व्रती पूरे दिन बिना जल के रहते हैं और भगवान विष्णु की उपासना करते हैं। 'निर्जला' का अर्थ है बिना जल के, और 'एकादशी' का मतलब है ग्यारहवीं तिथि। इस प्रकार, निर्जला एकादशी का मतलब है वह एकादशी जिस दिन बिना जल के उपवास रखा जाता है

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, निर्जला एकादशी व्रत का पालन करने से मनुष्य को सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत के समय भीमसेन को व्रत रखने में कठिनाई होती थी, इसलिए व्यासजी ने उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत करने की सलाह दी थी। इसे करने से भीम को सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त हुआ था।

निर्जला एकादशी व्रत को पूरे दिन और रात बिना जल ग्रहण किए रखा जाता है। प्रातः काल स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भक्तजन मंदिरों में जाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने दीप जलाते हैं और विशेष मंत्रों का जाप करते हैं। रात्रि में जागरण करके भजन-कीर्तन का आयोजन भी किया जाता है

आज के व्यस्त जीवन में भी लोग इस व्रत को बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाते हैं। निर्जला एकादशी न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि इसे आत्म-संयम और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक भी माना जाता है। यह व्रत व्यक्ति की आत्मिक शक्ति को बढ़ाता है और मानसिक शांति प्रदान करता है।

निर्जला एकादशी हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है जिसे आस्था और विश्वास के साथ मनाया जाता है। इस व्रत के पालन से व्यक्ति को आत्मिक शांति और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। इस पावन अवसर पर हम सभी को अपने जीवन में धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए।